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सोमवार, 4 नवंबर 2013

" कुछ शायरी की बात होजाए"...से नज्म-२२ - खुदा का नाम पाया है ... डा श्याम गुप्त

                                   

                                      कविता की भाव-गुणवत्ता के लिए समर्पित

            " कुछ शायरी की बात होजाए"...से  नज्म-२२  -  खुदा का नाम पाया है ... 

                                   
                                

                                    

                              
                                 मेरी शीघ्र प्रकाश्य शायरी संग्रह....." कुछ शायरी की बात होजाए ".... से  ग़ज़ल, नज्में , रुबाइयां, कते, शेर  आदि  इस ब्लॉग पर प्रकाशित किये जायंगे ......प्रस्तुत है......कुछ नज्में... नज़्म- २२ ....

खुदा का नाम पाया है ...

न तुम ही तुम हो दुनिया में,
न हम ही हम हैं इस जगमें |
हमीं हैं इसलिए तुम हो,
हो तुम भी इसलिए हम हैं |

खुदा ने ये खलक सारा,
बनाया है बसाया है |
खुदा है इसलिए हम हैं,
खुदा है निसलिये तुम हो |

रहें मिलकर के हम तुम सब,
खुदा की ऐसी मरजी थी |
खुदा तुम में भी  हम में भी,
खुदा सब में समाया है |

न मंदिर में न मस्जिद में,
न गिरिजा घर खुदा का है |
खुदा को खुद में ही ढूंढें ,
खुदा हम में नुमांया है |

खुदी को श्याम तू करले,
बुलंद इतना , खुदा कहदे |
मेरी सारी खुदाई ही,
मांगले आज तू मुझसे |

खुदी है आईना तेरा ,
उसी में खुदा बसता है |
खुदा ने इसलिए ही तो ,
खुदा का नाम पाया है ||

                                   क्रमश : ......नज्में  .....


गुरुवार, 4 जुलाई 2013

" कुछ शायरी की बात होजाए"...से नज्म-१७- तेरे जाने से......

                                      कविता की भाव-गुणवत्ता के लिए समर्पित

            " कुछ शायरी की बात होजाए"...से  नज्म-१७ -    तेरे जाने से...... ..

                                     
                                

                                      

                                
                                   मेरी शीघ्र प्रकाश्य शायरी संग्रह....." कुछ शायरी की बात होजाए ".... से  ग़ज़ल, नज्में  , रुबाइयां, कते, शेर  आदि  इस ब्लॉग पर प्रकाशित किये जायंगे ......प्रस्तुत है......कुछ नज्में... नज़्म-१७ 

                  तेरे जाने से......

हम नहीं मुस्कुराए हें इक ज़माने से |
ऐसे  हालात  हुए  हैं  तेरे  जाने  से |

हंसते रोते भी रहे यूं तो जीने के लिए ,
दर्द सारे यूंही पीते रहे पीने के लिए |
गीत जीने के भी हमने सभी गाये हैं ,
मन में खुशियों के ढेरों  सुमन उगाये हैं |

यादे उलफत को भुलाया कई बहाने से ,
ऐसे  हालात  हुए  हैं  तेरे  जाने  से |

तन में कलियाँ भी खिलीं, मस्त हवाएं भी चलीं ,
तन के आकाश में वो मस्त हवाएं छाईं |
मन के पंछी ने भी हो मस्त लगाए फेरे,
दिल की गलियों में भी वो मस्त बहारें आयीं |

हर खुशी पायी है पायी है सभी ऊंचाई,
तुमको हर बार भुलाया है हर बहाने से |

 ऐसे  हालात  हुए  हैं  तेरे  जाने  से |
हम नहीं मुस्कुराए हें इक ज़माने से

शनिवार, 15 जून 2013

" कुछ शायरी की बात होजाए"...से नज्म-६,,उनकी महफ़िल से ..... डा श्याम गुप्त .

                                          कविता की भाव-गुणवत्ता के लिए समर्पित


        " कुछ शायरी की बात होजाए"...से  नज्म-६-     उनकी महफ़िल से........

                                      
                                

                                       

                                 
                                   मेरी शीघ्र प्रकाश्य शायरी संग्रह....." कुछ शायरी की बात होजाए ".... से  ग़ज़ल, नज्में  , रुबाइयां, कते, शेर  आदि  इस ब्लॉग पर प्रकाशित किये जायंगे ......प्रस्तुत है......कुछ नज्में... नज़्म ६....

      उनकी महफ़िल से.


अब न हम उठ पायंगे उनकी महफ़िल से ,
बुलाया जब उसी ने हसरते दिल से |

जायंगे उठकर भी तो जाएँ कहाँ ,
उनके जैसा संगेदिल होगा कहाँ |
उनके इस इज़हार की इकरार की ,
यादों का कैसे भला भूलें जहां |

हम जहां से भी नहीं उठ पायंगे ,
सामने उनको नहीं जो पायंगे |
उस जहां में मिलने का वादा जो हो,
दो जहां की ज़िंदगी पा जायंगे |

यूं न खेलें वो हमारे टूटे दिल दे,
फिर भला कैसे निकल पायेंगे दिल से ||

अब न कोई  डोर यूं उम्मीद की ,
हमने बांधी उनसे उनकी प्रीति की|
चाह है इस दर पे निकले जब ये दम ,
बात हो इक हार की इक जीत की |

वो जनाज़े पर मेरे न आयंगे ,
लोग कुछ यह देखकर मुस्कायंगे |
किन्तु पढ़ने फातिहा अक्सर मेरी-
कब्र पर छुपाते-छुपाते आयंगे |

भूल पाए क्यों नहीं  हम उनको दिल से,
वो सदा पूछा करेंगे अपने दिल से ||





 

शुक्रवार, 7 जून 2013

ब्रजबांसुरी की रचनाएँ ...भाव अरपन छः ....अतुकांत रचनायें ...सुमन-१.. तस्वीर के दो रूप ....

                                                  कविता की भाव-गुणवत्ता के लिए समर्पित



                                       




            

          शीघ्र प्रकाश्य  ब्रजभाषा काव्य संग्रह ..." ब्रज बांसुरी " ...की ब्रजभाषा में रचनाएँ  गीत, ग़ज़ल, पद, दोहे, घनाक्षरी, सवैया, श्याम -सवैया, पंचक सवैया, छप्पय, कुण्डलियाँ, अगीत, नव गीत आदि  मेरे अन्य ब्लॉग .." हिन्दी हिन्दू हिंदुस्तान " ( http://hindihindoohindustaan.blogspot.com ) पर क्रमिक रूप में प्रकाशित की जायंगी ... ....
        कृति--- ब्रज बांसुरी ( ब्रज भाषा में विभिन्न काव्यविधाओं की रचनाओं का संग्रह )
         रचयिता ---डा श्याम गुप्त 
                     ---  श्रीमती सुषमा गुप्ता 
प्रस्तुत है भाव अरपन छः  ...तुकांत रचनायें ...सुमन-१.. तस्वीर के दो रूप ...

     तस्वीर -१...
भारत उभरि रहौ है 
जग भरि  में सुपर पावर बनिकें;
खड़ो है रहौ है , 
बड़े बड़ेन के सामुनै, तनिकैं|
भारतवासी विदेशन में हू 
सत्ता सासन के सीस पै हैं ;
का भयौ जो वे-
वहीं के नागरिक है गए हैं ?
हम अपुनी परम्परा औ-
सांस्कृतिक निधि कौं,
करोड़नि डालर में निर्यात करि  रहे हैं |
भारत के कलाकार -
विदेशन में जमि कें आइटम दै रहे हैं |
हाँ फिल्मन की शूटिंग ,
अधिकतर विदेशन में होवै है , और-
भारतीय संस्कृति -
 विदेशी संस्कारनि में घुलिकें ,
विलीन होवै  है |
तौ का भयौ --
एन जी ओ और आतम विश्वास ते भरी भई,
हमारी युवा पीढी के कारन-
हमारौ विदेशी मुद्रा भंडार तौ,
अरबन में बढ़तु है |
कछू पावे के हितू-
कछू खौनौ तो पडतु है ||

   तस्वीर -२

चमकत भये आधे सच ,
विकास के ढोल में ,
पतन की सही बात कहत भये ,
सांचे दस्तावेज,
खोय गए हैं , और-
हम चमक-धमक देखि कें
मोदु मनाय  रहे हैं |

मित्तल नै आर्सेलर खरीद लयी ,
टाटा नै कोरस,
सुनीता नै जीतौ आसमान ,
और अम्बानी नै ,
जग भरि के सबते धनी कौ खिताब |

पर हम का ये बता पावैंगे,
देश कौं समुझाय पावैंगे, कै-
वे करोड़न भारतीय लोग ,
जो आजहू गरीबी रेखा के नीचैं हैं -
कब ऊपर आवैंगे ?

का.. कारनि के ढेर ,
फ्लाई-ओवरनि की भरमार ,
आर्सेलर या कोरस ,
या चढ़तु भयौ  शेयर बज़ार,
उनकौं, दो जून की रोटी ,
दै पावैंगे ||



गुरुवार, 30 मई 2013

" कुछ शायरी की बात होजाए"...से नज्म-३ .. ऐतवार न कर ..... डा श्याम गुप्त .

                                       कविता की भाव-गुणवत्ता के लिए समर्पित

                                

                                       

                                 
                                   मेरी शीघ्र प्रकाश्य शायरी संग्रह....." कुछ शायरी की बात होजाए ".... से  ग़ज़ल, नज्में  , रुबाइयां, कते, शेर  आदि  इस ब्लॉग पर प्रकाशित किये जायंगे ......प्रस्तुत है......कुछ नज्में... नज़्म ३...\

           ऐतवार न कर ...




ए मेरे दिल तू यूंही गैर पे ऐतवार न कर |
प्यार को समझे न जो, तू उसे प्यार न कर ||....ऐ मेरे दिल....

गैर तो गैर हैं अपनों का भी एतवार कहाँ ,
ढूँढता क्या है जहां में अब एतवार कहाँ |
अपने एतवार पे भी, ऐ दिल ऐतवार न कर ,
इश्क को समझे न वो, इश्के इजहार न कर ||  ...ऐ मेरे दिल...

उनपे ऐतवार किया उनका करम देख लिया ,
इश्के इज़हार किया, इश्के भरम देख लिया |
श्याम’ तू एसी खता ,अब तो हर बार न कर ,
प्यार को समझे न वो, इश्के इकरार  न कर ||  ...ऐ मेरे दिल ...

इश्के इकरार या इनकार खुदा की रहमत,
कैसे कह दूं कि खुदा पे भी तू एतवार न कर || 
 ए मेरे दिल तू यूंही गैर पे ऐतवार न कर |
प्यार को समझे न जो, इश्के-इज़हार न कर |.... ए मेरे दिल ....

बुधवार, 22 मई 2013

" कुछ शायरी की बात होजाए"....ग़ज़ल-२२ व २३ ...... डा श्याम गुप्त .

                                  

                                              कविता की भाव-गुणवत्ता के लिए समर्पित


    " कुछ शायरी की बात होजाए".....      डा श्याम गुप्त .               

                                 
                                   मेरी शीघ्र प्रकाश्य शायरी संग्रह....." कुछ शायरी की बात होजाए ".... से  ग़ज़ल, नज्में  , रुबाइयां, कते, शेर  आदि  इस ब्लॉग पर प्रकाशित किये जायंगे ......प्रस्तुत है....ग़ज़ल- २२   व २३  ....


              तूफानों के साए  रहिये ..

उनका कहना है कि तूफानों के साए रहिये |
हर सितम आँधियों के यूं बचाए रहिये |

एक मज़बूत से खूंटे का सहारा लेलो,
बस कम्जोए पे जुल्मो-सितम ढाए रहिये |

दोष उनके दिखा रूपकों के आईने में,
होंठ लोगों के बस यूं सिलाए रहिये

आपको भी है इसी शहर में रहना आखिर,
धोंस देकर यूंही सच को दबाये रहिये  |

दोष झूठे ही औरों पे उछाले रखकर ,
खुद को हर एक इलजाम से बचाए रहिये |

हर कायदे-क़ानून से ऊपर हैं आप ,
बस यूहीं सांठ-गाँठ बनाए रहिये  |

सब समझते हैं पर यह न समझ पाए श्याम,
अपने अंतर से भला कैसे छुपाये रहिये  ||
         


         यह शहर है यार

इस शहर में आगये होशियार रहना |
यह शहर है यार, कुछ होशियार रहना |

इस शहर में घूमते हैं हर तरफ ही ,
मौत के साए, खुद होशियार रहना |

घूमते  हैं  खटखटाते अर्गलायें,
खोलना मत द्वार बस होशियार रहना |

एक दर्ज़न श्वान थे चार चौकीदार,
होगया है क़त्ल अब होशियार रहना |

अब न बागों में चहल कदमी को जाना,
 होरहा व्यभिचार तुम होशियार रहना |

सज संवर के अब न जाना साथ उनके,
खींच लेते हार सच  होशियार रहना  |

चोर की करने शिकायत आप थाने  जारहे,
पी चुके सब चाय चुप  होशियार रहना  |

क्षत विक्षत जो लाश चौराहे पर मिली,
कौन आदमखोर यह  होशियार रहना |

वह नहीं था बाघ आदमखोर यारो,
आदमी था श्याम ' तुम होशियार रहना ||




 

रविवार, 19 मई 2013

" कुछ शायरी की बात होजाए"....ग़ज़ल- १६ व १९ ...... डा श्याम गुप्त .


                                              कविता की भाव-गुणवत्ता के लिए समर्पित


    " कुछ शायरी की बात होजाए".....      डा श्याम गुप्त .               

                                 
                                   मेरी शीघ्र प्रकाश्य शायरी संग्रह....." कुछ शायरी की बात होजाए ".... से  ग़ज़ल, नज्में  , रुबाइयां, कते, शेर  आदि  इस ब्लॉग पर प्रकाशित किये जायंगे ......प्रस्तुत है....ग़ज़ल- १६  व १९  ,,

     पुकारा नहीं ....

हम भला क्या कहते ,
तुमने ही पुकारा नहीं |

दर्दे-दिल रहे सहते,
तुमने ही पुकारा नहीं |




टूटते रहे पर दिया,
तुमने ही सहारा नहीं |

तेरी वफ़ा का किया,
हमने ही नज़ारा नहीं |

तूफां में कश्ती को मिला,
साहिल का सहारा नहीं |

और भी गम हैं, सिर्फ-
दिल ही बेचारा नहीं |

अब भी निकल लो श्याम ,
मिलेगा फिर किनारा नहीं |



पीर ज़माने की....

उसमें घुसने की मुझको ही मनाही है |
दरो दीवार जो मैंने ही बनाई है |

मैं ही सज़दे के काबिल नहीं उसमें,
ईंट दर ईंट मस्जिद मैंने ही चिनाई है |

पुस्तक के पन्नों मे उसी का ज़िक्र नहीं ,
पन्नों पन्नों ढली वो बेनाम स्याही है |

लिख दिए हैं ग्रंथों पर किस किस के नाम,
अक्षर अक्षर तो कलम की लिखाई है |

गगन चुम्बी अटारियों पर  है सब की नज़र,
नींव के पत्थर की सदा किसको सुहाई है |

सज संवर के इठलाती तो हैं इमारतें पर,
अनगढ़ पत्थरों की पीर नींव में समाई है |

वो दिल तो कोई दिल ही नहीं जिसमें,
भावों की नहीं बजती शहनाई  है |

इस सूरतो-रंग का क्या फ़ायदा श्याम,
जो मन नहीं पीर ज़माने की समाई है ||




बुधवार, 15 मई 2013

" कुछ शायरी की बात होजाए"..... डा श्याम गुप्त .

                                              कविता की भाव-गुणवत्ता के लिए समर्पित


                                      

    " कुछ शायरी की बात होजाए".....      डा श्याम गुप्त .               

                                 
                                   मेरी शीघ्र प्रकाश्य शायरी संग्रह....." कुछ शायरी की बात होजाए ".... से  ग़ज़ल, नज्में  , रुबाइयां, कते, शेर  आदि  इस ब्लॉग पर प्रकाशित किये जायंगे ......प्रस्तुत है....ग़ज़ल- १५ ,,, क्यों है ...

टूटते आईने सा हर व्यक्ति यहां क्यों है।
हैरान सी नज़रों के ये अक्स यहां क्यों है।

दौडता नज़र आये इन्सान यहां हर दम,
इक ज़द्दो ज़हद में हर शख्स यहां क्यों है ।

वो हंसते हुए गुलशन चेहरे किधर गये,
हर चेहरे पै खौफ़ का यह नक्श यहां क्यों है।

गुलज़ार रहते थे गली बाग चौराहे,
वीराना सा आज हर वक्त यहां क्यों है ।

तुलसी सूर गालिव की सरज़मीं पै ’श्याम,
आतंक की फ़सल सरसब्ज़ यहां क्यों है॥




रविवार, 12 मई 2013

" कुछ शायरी की बात होजाए "....ग़ज़ल - १२. त्रिपदा-अगीत ग़ज़ल........ डा श्याम गुप्त ....

                                          
    " कुछ शायरी की बात होजाए".....      डा श्याम गुप्त .               

                                 
                                                कविता की भाव-गुणवत्ता के लिए समर्पित


             मेरी शीघ्र प्रकाश्य शायरी संग्रह....." कुछ शायरी की बात होजाए ".... से  ग़ज़ल, नज्में  इस ब्लॉग पर प्रकाशित की जायंगी ......प्रस्तुत है....ग़ज़ल-१२ ...त्रिपदा -अगीत ग़ज़ल.....पागल दिल...



            पागल दिल

क्यों पागल दिल हर पल उलझे ,
जाने क्यों किस जिद में उलझे ;
सुलझे कभी, कभी फिर उलझे।

तरह- तरह  से  समझा देखा ,
पर दिल है  उलझा  जाता है ;
क्यों  ऐसे पागल से  उलझे।

धडकन बढती जाती दिल की,
कहता  बातें किस्म किस्म की ;
ज्यों काँटों में आँचल उलझे  ।।                        

 


मंगलवार, 7 मई 2013

" कुछ शायरी की बात होजाए "....ग़ज़ल - ११. त्रिपदा ग़ज़ल........ डा श्याम गुप्त ....

                                          
                                           
                                         

                                 
                                                कविता की भाव-गुणवत्ता के लिए समर्पित


             मेरी शीघ्र प्रकाश्य शायरी संग्रह....." कुछ शायरी की बात होजाए ".... से  ग़ज़ल, नज्में  इस ब्लॉग पर प्रकाशित की जायंगी ......प्रस्तुत है....ग़ज़ल-११ ...त्रिपदा ग़ज़ल.....

यादों के ज़जीरे उग आए हैं-
गम के समंदर में ,
कश्ती कहाँ कहाँ ले जाएँ हम |

दर्दे-दिल उभर आये हैं जख्म बने-
तन की वादियों में,
मरहमे इश्क कहाँ तक लगाएं हम |

तनहाई के मंज़र बिछ गए हैं -
मखमली दूब बनकर,
बहारे हुश्न कहाँ तक लायें हम |

रोशनी की लौ कोई दिखती नहीं -
इस अमां की रात में,
सदायें कहाँ तक बिखराएँ हम |

वस्ल की उम्मीद ही नहीं रही 'श्याम 
पयामे इश्क सुनकर,
दुआएं कहाँ तक अब गायें हम ||
 



सोमवार, 6 मई 2013

" कुछ शायरी की बात होजाए "....ग़ज़ल - ९..तू वही है .... डा श्याम गुप्त ....

                                           
                                         

                                 
                                                कविता की भाव-गुणवत्ता के लिए समर्पित


             मेरी शीघ्र प्रकाश्य शायरी संग्रह....." कुछ शायरी की बात होजाए ".... से  ग़ज़ल, नज्में  इस ब्लॉग पर प्रकाशित की जायंगी ......प्रस्तुत है....ग़ज़ल- ९ ...तू वही है ....


तू वही है 
तू वही है |

प्रश्न गहरा ,
तू कहीं है |

तू कहीं है, 
या नहीं है |

कौन कहता ,
तू नहीं है |

है भी तू,
है भी नहीं है |

जहाँ ढूंढो ,
तू वहीं है |

जो कहीं है ,
तू वहीं है |

वायु जल थल ,
सब कहीं है |

मैं जहां है,
तू नहीं है |

तू जहां है ,
मैं नहीं है |

प्रश्न का तो,
हल यही है |

तू ही तू है,
तू वही है |

मैं न मेरा,
सच यही है |

तत्व सारा,
बस यही है |

 मैं वही हूँ ,
तू वही है |

बसा हरसू ,
श्याम ही है |

श्याम ही है,
श्याम ही है ||









सोमवार, 29 अप्रैल 2013

" कुछ शायरी की बात होजाए "....ग़ज़ल -७--आशनाई .... डा श्याम गुप्त ....

                                         

                                 
                                                कविता की भाव-गुणवत्ता के लिए समर्पित


             मेरी शीघ्र प्रकाश्य शायरी संग्रह....." कुछ शायरी की बात होजाए ".... से  ग़ज़ल, नज्में  इस ब्लॉग पर प्रकाशित की जायंगी ......प्रस्तुत है....ग़ज़ल-7.... आशनाई ...

यूं तो खारों  से ही अपनी आशनाई है |
आंधियां भी तो सदा हमको रास आईं हैं |

मुश्किलों का है सफ़र जीना यहाँ ए दिल,
हर एक मुश्किल नयी राह लेके आई है |

तू न घबराना गर राह में पत्थर भी मिलें ,
पत्थरों में भी उसी रब की लौ समाई है |

डूबकर जानिये इसमें ये है दरिया गहरा,
लुत्फ़ क्या तरने का जिसमें न हो गहराई है |

आशिकी उससे करो श्याम हो दुश्मन कोई,
दोस्त, दुश्मन  को बनाए वो आशनाई है ||


शुक्रवार, 26 अप्रैल 2013

" कुछ शायरी की बात होजाए "....ग़ज़ल -6 .... डा श्याम गुप्त ....

                                      
                                              
                                           कविता की भाव-गुणवत्ता के लिए समर्पित


             मेरी शीघ्र प्रकाश्य शायरी संग्रह....." कुछ शायरी की बात होजाए ".... से  ग़ज़ल, नज्में  इस ब्लॉग पर प्रकाशित की जायंगी ......प्रस्तुत है....ग़ज़ल- ६..... कब समझेंगे ....
लोग आखिर ये बात कब समझेंगे |
बदले शहर के हालात, कब समझेंगे |

ये है तमाशबीनों का शहर यारो,
कोई न  देगा साथ, कब समझेंगे |

जांच करने क़त्ल की कोई न आया,
हैं माननीय शहर में आज, कब समझेंगे|

चोर डाकू लुटेरे पकडे नहीं जाते,
सुरक्षा-चक्र में हैं ज़नाब, कब समझेंगे |

कब से खड़े हैं आप लाइन में बेंक की,
व्यस्त सब पीने में चाय, कब समझेंगे |

बढ़ रही अश्लीलता सारे देश में,
सब सोरहे चुपचाप, कब समझेंगे |

श्याम, छाई है बेगैरती चहुँ ओर,
क्या निर्दोष हैं आप, कब समझेंगे ||





गुरुवार, 25 अप्रैल 2013

" कुछ शायरी की बात होजाए "....ग़ज़ल 4 .... डा श्याम गुप्त ....

                                              
                                           कविता की भाव-गुणवत्ता के लिए समर्पित


             मेरी शीघ्र प्रकाश्य शायरी संग्रह....." कुछ शायरी की बात होजाए ".... से  ग़ज़ल, नज्में  इस ब्लॉग पर प्रकाशित की जायंगी ......प्रस्तुत है....ग़ज़ल-४.......


            मुझे न छेडो...
मुझे न छेडो इस मानस में ज्वाला मुखी भरे हैं।
जाने क्या-क्या कैसे कैसे अन्तर्द्वन्द्व भरे हैं।

क्या पाओगे घावों को सहलाकर इस तन-मन के,
क्या पाओगे छूकर तन के मन के घाव हरे हैं।

खुशियों की सरगम हो,या हो पीडा की शहनाई,
हंस-हंस कर हर राग सजाया ,बाधा से न डरे हैं।

कोने-कोने क्यों छाई आतन्कवाद की छाया ,
सामाज़िक शुचि मूल्य आज टूटॆ-टूटे बिखरे हैं।

हमने अतिसुख-अभिलाषा में आग लगाई घर को,
कटु बातें कह् डालीं हमने मन के भाव खरे हैं।

यह अग जग सुख-दुःख का मेला, किसने दुःख ना झेला,
धैर्य लगन सत नीति चले जो,सुख के पुष्प झरे हैं |

जिसने खुद को कठिन परिश्रम,जप-तप योग तपाया,
वे ही सोने जैसा तपकर इस जग में निखरे हैं।

एक भरोसा उसी राम का,जग- पालक- धारक है,
श्याम’ कृपा  से जाने कितने भव-सागर उतरे हैं॥

बुधवार, 24 अप्रैल 2013

कुछ शायरी की बात होजाए ..ग़ज़ल.--१.......डा श्याम गुप्त .....

                                                                 

                             
                                   कविता की भाव-गुणवत्ता के लिए समर्पित


             मेरी शीघ्र प्रकाश्य शायरी संग्रह....." कुछ शायरी की बात होजाए ".... से  ग़ज़ल, नज्में  इस ब्लॉग पर प्रकाशित की जायंगी ......प्रस्तुत है. प्रथम...रचना ...ग़ज़ल..१...

ऐ हसीं ता ज़िंदगी ओठों पै तेरा नाम हो |
पहलू में कायनात हो उसपे लिखा तेरा नाम हो |


ता उम्र मैं पीता रहूँ यारव वो मय तेरे हुश्न की,
हो हसीं रुखसत का दिन बाहों में तू हो जाम हो |

जाम तेरे वस्ल का और नूर उसके शबाब का,
उम्र भर छलका रहे यूंही ज़िंदगी की शाम हो |

नगमे तुम्हारे प्यार के और सिज़दा रब के नाम का,
पढ़ता रहूँ झुकता रहूँ यही ज़िंदगी का मुकाम हो |

चर्चे तेरे ज़लवों के हों और ज़लवा रब के नाम का,
सदके भी हों सज़दे भी हों यूही ज़िंदगी ये तमाम हो |

या रब तेरी दुनिया में क्या एसा भी कोई तौर है,
पीता रहूँ, ज़न्नत मिले जब रुखसते मुकाम हो |

है इब्तिदा , रुखसत के दिन ओठों पै तेरा नाम हो,
हाथ में कागज़-कलम स्याही से लिखा 'श्याम' हो ||




मंगलवार, 23 अप्रैल 2013

कुछ शायरी की बात होजाए ..ग़ज़ल...सरस्वती वन्दना ...डा श्याम गुप्त .....

                                      

                                     कविता की भाव-गुणवत्ता के लिए समर्पित


             मेरी शीघ्र प्रकाश्य शायरी संग्रह....." कुछ शायरी की बात होजाए ".... से  ग़ज़ल, नज्में  इस ब्लॉग पर प्रकाशित की जायंगी ......प्रस्तुत है..द्वितीय रचना ....सरस्वती वन्दना ..ग़ज़ल में ...    सरस्वती वन्दना  ....
 
वन्दना  के स्वर ग़ज़ल में कह सकूं माँ शारदे !
कुछ शायरी  के भाव का भी ज्ञान दो माँ शारदे ! 
 
माँ की कृपा यदि हो न तो कैसे ग़ज़ल साकार हो,
कुछ कलमकारी का मुझे भी भान हो  माँ शारदे !
 
मैं जीव, माया बंधनों में स्वयं को भूला हुआ,
नव स्वर लहरियों से हे माँ! ह्रद-तंत्र को झंकार दे |
 
मैं स्वयं को पहचान लूं उस आत्मतत्व को जान लूं,
अंतर में अंतर बसे उस परब्रह्म को गुंजार दे |

हे श्वेत कमलासना माँ !, हे श्वेत वस्त्र से आवृता,
वीणा औ पुस्तक कर धरे,नत नमन लो माँ शारदे !

मैं बुद्धिहीन हूँ काव्य-सुर का ज्ञान भी मुझको नहीं ,
उर ग़ज़ल के स्वर बह सकें कर वीणा की टंकार दे |

ये वन्दना के स्वर-सुमन अर्पण हैं माँ स्वीकार लो ,
हो धन्य जीवन श्याम'का बस कृपा हो माँ शारदे ||
 



रविवार, 21 अप्रैल 2013

कुछ शायरी की बात होजाए ...ईश प्रार्थना ....डा श्याम गुप्त .....

                                     कविता की भाव-गुणवत्ता के लिए समर्पित


             मेरी शीघ्र प्रकाश्य शायरी संग्रह....." कुछ शायरी की बात होजाए ".... से  ग़ज़ल, नज्में  इस ब्लॉग पर प्रकाशित की जायंगी ......प्रस्तुत है प्रथम रचना .....

        ईश प्रार्थना --ग़ज़ल में ....

ईश अपने भक्त पर, इतनी कृपा कर दीजिये |
रमे तन मन राष्ट्र हित में, प्रभो ! यह वर दीजिये |

प्रेम करुणा प्राणिसेवा, भाव नर के उर बसें ,
दया ममता सत्य से युत, भाव मन धर  दीजिये |

सहज भक्ति से  आपकी,  मानव करे नित वन्दना ,
हो प्रेममार्ग प्रशस्त जग में, प्रीति  लय सुर दीजिये |

मैं न मंदिर में गया, प्रतिमा तुम्हारी पूजने,
भाव हो पत्थर नहीं, यह भाव जग भर दीजिये |

पाप पंक में इस जगत के, डूबकर भूला तुम्हें ,
याद करके स्वयं  मुझको, भक्ति के स्वर दीजिये |

दूर से आया तुम्हारी शंख-ध्वनि का नाद सुन ,
नाद अनहद मधुर स्वर से, भर प्रभो! उर दीजिये |

राह आधी अगया हूँ, अब चला जाता नहीं ,
हो कृपासागर तो दर्शन यहीं आकर दीजिये |

हे दयामय! दयासागर! प्रभु दया के धाम हो ,
श्याम के ह्रदय में बस कर, पूर्ण व्रत कर दीजिये ||

 

रविवार, 7 अप्रैल 2013

श्याम स्मृति ...मातृभाषा या राष्ट्रभाषा क्यों ?

                                कविता की भाव-गुणवत्ता के लिए समर्पित



श्याम स्मृति ...मातृभाषा या राष्ट्रभाषा क्यों ? 
                हमें अपनी विदेशी भाषा की अपेक्षा अपनी मातृभाषा या राष्ट्रभाषा के माध्यम से क्यों पढ़ना -पढ़ाना व सभी कार्य-कलाप करना चाहिए ? चाहे वह स्कूली शिक्षा हो या उच्च-शिक्षा या विज्ञान आदि विशिष्ट विषयों की प्रोद्योगिक शिक्षा ....क्या यह सिर्फ राष्ट्रीयता का या भावुकता व सवेदनशीलता का प्रश्न है ? नहीं.... वास्तव में अंग्रेज़ी या विदेशी माध्यम में शिक्षा विद्यार्थियों को विज्ञान के ही नहीं अपितु सभी प्रकार के ज्ञान को पूर्णरूपेण आत्मसात करने में मदद नहीं करती। बिना आत्मसात हुए कोई भी ज्ञान... .प्रगति. नवोन्नत-ज्ञान या अनुसंधान में मदद नहीं करता।
                   अंग्रेज़ी में शिक्षा हमारे युवाओं में अंग्रेज़ों (अमैरिकी –विदेशी ) की ओर देखने का आदी बना देती है। हर समस्या का हल हमें परमुखापेक्षी बना देता है | अन्य के द्वारा किया हुआ हल नक़ल कर लेना समस्या का आसान हल लगता है चाहे वह हमारे देश-काल के परिप्रेक्ष्य में समुचित हल हो या न हो| विदेशी माध्यम में शिक्षा हमारा आत्मविश्वास कम करती है और हमारी सहज कार्य-कुशलता व अनुसंधानात्मक प्रवृत्ति को भी पंगु बनाती है। स्पष्ट है कि नकल करने वाला पिछड़ा ही रहेगा, दूसरों की दया पर निर्भर करेगा, वह स्वाधीन नहीं हो सकेगा| स्वभाषा से अन्यथा विदेशी भाषा में शिक्षा से अपने स्वयं के संस्कार , उच्च आदर्श , शास्त्रीय-सुविचार, स्वदेशी भावना , राष्ट्रीयता , आदर्श आदि उदात्त भाव सहज रूप से नहीं पनपते | यदि हम बच्चों को , युवाओं को ऊँचे आदर्श नहीं देंगे तब वे विदेशी नाविलों , विदेशी समाचारों , साहित्य ,टीवी –इंटरनेट आदि से नचैय्यों -गवैय्यों को अनजाने ही अपना आदर्श बना लेंगे, उनके कपड़ों या फ़ैशन की, उनके खानपान की रहन-सहन की झूठी- अप्सस्कृति की जीवन शैली की नकल करने लगेंगे।
अंग्रेज़ी माध्यम की शिक्षा से हम उसी ओर जा रहे हैं | अतः हमें निश्चय ही अपनी श्रेष्ठ भाषाओं में शिक्षा प्राप्त करना चाहिए ताकि सहज नवोन्नति एवं स्वाधीनता के भाव-विचार उत्पन्न हों | अंग्रेज़ी एक विदेशी भाषा की भाँती पढाई जा सकती है | इसमें किसी को आपत्ति भी नहीं होगी | दुनिया के तमाम देश स्व-भाषा में शिक्षाके बल पर विज्ञान- ज्ञान में हमसे आगे बढ़ चुके हैं| हम कब संभलेंगे |

रविवार, 24 फ़रवरी 2013

श्याम स्मृति...... सिद्धांत , विश्वास एवं नियम...तथा नायक-पूजा ( हीरो वर्शिप )...डा श्याम गुप्त

                                      कविता की भाव-गुणवत्ता के लिए समर्पित


                          ..प्रायः यह कहा जाता है कि भारतीय -जनमानस  धार्मिक व दार्शनिक विचार-तत्वों पर नायक-पूजा में , उनके पीछे चलने में अधिक विश्वास रखते हैं| इसीलिये भारतीय तेजी से प्रगति नहीं कर पारहे हैं |  प्रायः पारंपरिक ज्ञान व शिक्षा में विश्वास न रखने वाले अधुना-विद्वान् भी यह कहते पाए गए हैं कि हमें कुछ ऐसा तरीका, तंत्र या शैली विक्सित करना चाहिए जो सिद्धांतों, विश्वासों एवं नियमों पर आधारित नहीं हो |
                          इस के परिप्रेक्ष्य में फिर यह भी कहा जा सकता है कि तो फिर किसी को  इन विद्वानों के कथन पर भी विश्वास नहीं करना चाहिए | वस्तुतः जब तक हमारे अंतर में  पहले से ही मौजूद पारंपरिक ज्ञान, विश्वास, विचारों व सिद्धांतों के प्रति  श्रृद्धा व विश्वास नहीं होते एवं  हम उनको पूर्णरूपेण एवं गहराई से जानने एवं समझने योग्य नहीं होपाते | तो हम उन्हें उचित यथातथ्य रूप से विश्लेषित करके वर्त्तमान देश-कालानुसार एवं अपने स्वयं के विचारों और नवीन प्रगतिशील विचारों के अनुरूप नहीं  बना सकते ; जो संस्कृति व सभ्यता की प्रगति हेतु आवश्यक होता है ....
                                   "जिन खोजा तिन पाइया, गहरे पानी पैठ|
                                    हों बौरी  डूबन  डरी,  रही किनारे  बैठ  |"
अतः क्या आवश्यक है ......
१. स्वयं अपने ही विचारों पर चलकर अति-तीब्रता से प्रगति हेतु अनजान -अज्ञानान्धकार में प्रवेश करके पुनः पुनः हिट एंड ट्रायल के आधार पर चलें .....अथवा ..
२. पहले से ही उपस्थित अनुभवी, ज्ञानी पुरखों के सही  व उचित धार्मिक व सांस्कृतिक ज्ञान के मार्ग पर..(. जो समय से परिपक्व एवं इतने समय से जीवन संघर्ष में बने हुए होने से स्वयं-सिद्ध हैं).... शनैः-शनैः स्थिर  परन्तु उचित गति से प्रगति के पथ पर चलना ..
                                                                 हमें सोचना होगा.....