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गुरुवार, 30 मई 2013

" कुछ शायरी की बात होजाए"...से नज्म-३ .. ऐतवार न कर ..... डा श्याम गुप्त .

                                       कविता की भाव-गुणवत्ता के लिए समर्पित

                                

                                       

                                 
                                   मेरी शीघ्र प्रकाश्य शायरी संग्रह....." कुछ शायरी की बात होजाए ".... से  ग़ज़ल, नज्में  , रुबाइयां, कते, शेर  आदि  इस ब्लॉग पर प्रकाशित किये जायंगे ......प्रस्तुत है......कुछ नज्में... नज़्म ३...\

           ऐतवार न कर ...




ए मेरे दिल तू यूंही गैर पे ऐतवार न कर |
प्यार को समझे न जो, तू उसे प्यार न कर ||....ऐ मेरे दिल....

गैर तो गैर हैं अपनों का भी एतवार कहाँ ,
ढूँढता क्या है जहां में अब एतवार कहाँ |
अपने एतवार पे भी, ऐ दिल ऐतवार न कर ,
इश्क को समझे न वो, इश्के इजहार न कर ||  ...ऐ मेरे दिल...

उनपे ऐतवार किया उनका करम देख लिया ,
इश्के इज़हार किया, इश्के भरम देख लिया |
श्याम’ तू एसी खता ,अब तो हर बार न कर ,
प्यार को समझे न वो, इश्के इकरार  न कर ||  ...ऐ मेरे दिल ...

इश्के इकरार या इनकार खुदा की रहमत,
कैसे कह दूं कि खुदा पे भी तू एतवार न कर || 
 ए मेरे दिल तू यूंही गैर पे ऐतवार न कर |
प्यार को समझे न जो, इश्के-इज़हार न कर |.... ए मेरे दिल ....

बुधवार, 22 मई 2013

" कुछ शायरी की बात होजाए"....ग़ज़ल-२२ व २३ ...... डा श्याम गुप्त .

                                  

                                              कविता की भाव-गुणवत्ता के लिए समर्पित


    " कुछ शायरी की बात होजाए".....      डा श्याम गुप्त .               

                                 
                                   मेरी शीघ्र प्रकाश्य शायरी संग्रह....." कुछ शायरी की बात होजाए ".... से  ग़ज़ल, नज्में  , रुबाइयां, कते, शेर  आदि  इस ब्लॉग पर प्रकाशित किये जायंगे ......प्रस्तुत है....ग़ज़ल- २२   व २३  ....


              तूफानों के साए  रहिये ..

उनका कहना है कि तूफानों के साए रहिये |
हर सितम आँधियों के यूं बचाए रहिये |

एक मज़बूत से खूंटे का सहारा लेलो,
बस कम्जोए पे जुल्मो-सितम ढाए रहिये |

दोष उनके दिखा रूपकों के आईने में,
होंठ लोगों के बस यूं सिलाए रहिये

आपको भी है इसी शहर में रहना आखिर,
धोंस देकर यूंही सच को दबाये रहिये  |

दोष झूठे ही औरों पे उछाले रखकर ,
खुद को हर एक इलजाम से बचाए रहिये |

हर कायदे-क़ानून से ऊपर हैं आप ,
बस यूहीं सांठ-गाँठ बनाए रहिये  |

सब समझते हैं पर यह न समझ पाए श्याम,
अपने अंतर से भला कैसे छुपाये रहिये  ||
         


         यह शहर है यार

इस शहर में आगये होशियार रहना |
यह शहर है यार, कुछ होशियार रहना |

इस शहर में घूमते हैं हर तरफ ही ,
मौत के साए, खुद होशियार रहना |

घूमते  हैं  खटखटाते अर्गलायें,
खोलना मत द्वार बस होशियार रहना |

एक दर्ज़न श्वान थे चार चौकीदार,
होगया है क़त्ल अब होशियार रहना |

अब न बागों में चहल कदमी को जाना,
 होरहा व्यभिचार तुम होशियार रहना |

सज संवर के अब न जाना साथ उनके,
खींच लेते हार सच  होशियार रहना  |

चोर की करने शिकायत आप थाने  जारहे,
पी चुके सब चाय चुप  होशियार रहना  |

क्षत विक्षत जो लाश चौराहे पर मिली,
कौन आदमखोर यह  होशियार रहना |

वह नहीं था बाघ आदमखोर यारो,
आदमी था श्याम ' तुम होशियार रहना ||




 

रविवार, 19 मई 2013

" कुछ शायरी की बात होजाए"....ग़ज़ल- १६ व १९ ...... डा श्याम गुप्त .


                                              कविता की भाव-गुणवत्ता के लिए समर्पित


    " कुछ शायरी की बात होजाए".....      डा श्याम गुप्त .               

                                 
                                   मेरी शीघ्र प्रकाश्य शायरी संग्रह....." कुछ शायरी की बात होजाए ".... से  ग़ज़ल, नज्में  , रुबाइयां, कते, शेर  आदि  इस ब्लॉग पर प्रकाशित किये जायंगे ......प्रस्तुत है....ग़ज़ल- १६  व १९  ,,

     पुकारा नहीं ....

हम भला क्या कहते ,
तुमने ही पुकारा नहीं |

दर्दे-दिल रहे सहते,
तुमने ही पुकारा नहीं |




टूटते रहे पर दिया,
तुमने ही सहारा नहीं |

तेरी वफ़ा का किया,
हमने ही नज़ारा नहीं |

तूफां में कश्ती को मिला,
साहिल का सहारा नहीं |

और भी गम हैं, सिर्फ-
दिल ही बेचारा नहीं |

अब भी निकल लो श्याम ,
मिलेगा फिर किनारा नहीं |



पीर ज़माने की....

उसमें घुसने की मुझको ही मनाही है |
दरो दीवार जो मैंने ही बनाई है |

मैं ही सज़दे के काबिल नहीं उसमें,
ईंट दर ईंट मस्जिद मैंने ही चिनाई है |

पुस्तक के पन्नों मे उसी का ज़िक्र नहीं ,
पन्नों पन्नों ढली वो बेनाम स्याही है |

लिख दिए हैं ग्रंथों पर किस किस के नाम,
अक्षर अक्षर तो कलम की लिखाई है |

गगन चुम्बी अटारियों पर  है सब की नज़र,
नींव के पत्थर की सदा किसको सुहाई है |

सज संवर के इठलाती तो हैं इमारतें पर,
अनगढ़ पत्थरों की पीर नींव में समाई है |

वो दिल तो कोई दिल ही नहीं जिसमें,
भावों की नहीं बजती शहनाई  है |

इस सूरतो-रंग का क्या फ़ायदा श्याम,
जो मन नहीं पीर ज़माने की समाई है ||




बुधवार, 15 मई 2013

" कुछ शायरी की बात होजाए"..... डा श्याम गुप्त .

                                              कविता की भाव-गुणवत्ता के लिए समर्पित


                                      

    " कुछ शायरी की बात होजाए".....      डा श्याम गुप्त .               

                                 
                                   मेरी शीघ्र प्रकाश्य शायरी संग्रह....." कुछ शायरी की बात होजाए ".... से  ग़ज़ल, नज्में  , रुबाइयां, कते, शेर  आदि  इस ब्लॉग पर प्रकाशित किये जायंगे ......प्रस्तुत है....ग़ज़ल- १५ ,,, क्यों है ...

टूटते आईने सा हर व्यक्ति यहां क्यों है।
हैरान सी नज़रों के ये अक्स यहां क्यों है।

दौडता नज़र आये इन्सान यहां हर दम,
इक ज़द्दो ज़हद में हर शख्स यहां क्यों है ।

वो हंसते हुए गुलशन चेहरे किधर गये,
हर चेहरे पै खौफ़ का यह नक्श यहां क्यों है।

गुलज़ार रहते थे गली बाग चौराहे,
वीराना सा आज हर वक्त यहां क्यों है ।

तुलसी सूर गालिव की सरज़मीं पै ’श्याम,
आतंक की फ़सल सरसब्ज़ यहां क्यों है॥




रविवार, 12 मई 2013

" कुछ शायरी की बात होजाए "....ग़ज़ल - १२. त्रिपदा-अगीत ग़ज़ल........ डा श्याम गुप्त ....

                                          
    " कुछ शायरी की बात होजाए".....      डा श्याम गुप्त .               

                                 
                                                कविता की भाव-गुणवत्ता के लिए समर्पित


             मेरी शीघ्र प्रकाश्य शायरी संग्रह....." कुछ शायरी की बात होजाए ".... से  ग़ज़ल, नज्में  इस ब्लॉग पर प्रकाशित की जायंगी ......प्रस्तुत है....ग़ज़ल-१२ ...त्रिपदा -अगीत ग़ज़ल.....पागल दिल...



            पागल दिल

क्यों पागल दिल हर पल उलझे ,
जाने क्यों किस जिद में उलझे ;
सुलझे कभी, कभी फिर उलझे।

तरह- तरह  से  समझा देखा ,
पर दिल है  उलझा  जाता है ;
क्यों  ऐसे पागल से  उलझे।

धडकन बढती जाती दिल की,
कहता  बातें किस्म किस्म की ;
ज्यों काँटों में आँचल उलझे  ।।                        

 


मंगलवार, 7 मई 2013

" कुछ शायरी की बात होजाए "....ग़ज़ल - ११. त्रिपदा ग़ज़ल........ डा श्याम गुप्त ....

                                          
                                           
                                         

                                 
                                                कविता की भाव-गुणवत्ता के लिए समर्पित


             मेरी शीघ्र प्रकाश्य शायरी संग्रह....." कुछ शायरी की बात होजाए ".... से  ग़ज़ल, नज्में  इस ब्लॉग पर प्रकाशित की जायंगी ......प्रस्तुत है....ग़ज़ल-११ ...त्रिपदा ग़ज़ल.....

यादों के ज़जीरे उग आए हैं-
गम के समंदर में ,
कश्ती कहाँ कहाँ ले जाएँ हम |

दर्दे-दिल उभर आये हैं जख्म बने-
तन की वादियों में,
मरहमे इश्क कहाँ तक लगाएं हम |

तनहाई के मंज़र बिछ गए हैं -
मखमली दूब बनकर,
बहारे हुश्न कहाँ तक लायें हम |

रोशनी की लौ कोई दिखती नहीं -
इस अमां की रात में,
सदायें कहाँ तक बिखराएँ हम |

वस्ल की उम्मीद ही नहीं रही 'श्याम 
पयामे इश्क सुनकर,
दुआएं कहाँ तक अब गायें हम ||
 



सोमवार, 6 मई 2013

" कुछ शायरी की बात होजाए "....ग़ज़ल - ९..तू वही है .... डा श्याम गुप्त ....

                                           
                                         

                                 
                                                कविता की भाव-गुणवत्ता के लिए समर्पित


             मेरी शीघ्र प्रकाश्य शायरी संग्रह....." कुछ शायरी की बात होजाए ".... से  ग़ज़ल, नज्में  इस ब्लॉग पर प्रकाशित की जायंगी ......प्रस्तुत है....ग़ज़ल- ९ ...तू वही है ....


तू वही है 
तू वही है |

प्रश्न गहरा ,
तू कहीं है |

तू कहीं है, 
या नहीं है |

कौन कहता ,
तू नहीं है |

है भी तू,
है भी नहीं है |

जहाँ ढूंढो ,
तू वहीं है |

जो कहीं है ,
तू वहीं है |

वायु जल थल ,
सब कहीं है |

मैं जहां है,
तू नहीं है |

तू जहां है ,
मैं नहीं है |

प्रश्न का तो,
हल यही है |

तू ही तू है,
तू वही है |

मैं न मेरा,
सच यही है |

तत्व सारा,
बस यही है |

 मैं वही हूँ ,
तू वही है |

बसा हरसू ,
श्याम ही है |

श्याम ही है,
श्याम ही है ||